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Tuesday, August 10, 2010

4th Edition...................

Feedback from JP Dangwal ji

सृजन से” के दो अंक भेजने के लिए धन्यवाद। हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्रिकाएं धर्म युग और साप्ताहिक हिन्दुस्तान के प्रकाशन से बड़े बड़े प्रकाशक जुड़े हुए थे जिनके पास न तो धनाभाव था और न ही विज्ञापनों की कमी। लेकिन व्यवसायिक दृष्टिकोण से आर्थिक लाभ न होने के कारण दोनो उच्च कोटि की पत्रिकाएं बुरी तरह लड़खड़ा गईं। यह एक कटु सत्य है कि आधुनिक परिवेश में हिन्दी की एक मनोरम पत्रिका निकालना एक सहज कार्य नहीं है। आपने एवं आपके यहयोगियों ने अपने सामर्थ्य से “सृजन से” का प्रकाशन आरम्भ कर इस दिशा में एक साहसिक और सराहनीय
कार्य किया है।

सृजन से
” अंक जनवरी-मार्च, 2010 के संपादकीय में मीना पाण्डे जी की “सृजन से" की प्रथम दस्तक पाठकों के द्वार पर” एक सशत्त, सुरूचि पूर्ण और ठोस दस्तक लगी। मेरी यह सम्मति है कि यह सुन्दर दस्तक “सुजन से” के प्रत्येक अंक में बड़े आकार में “नव वर्ष की हर बेला पर” के स्थान पर “इस वर्ष की हर बेला पर” के साथ प्रकाशित हो।

श्री के. पाण्डे जी एवं श्री महेश चन्द्र पाण्डे जी के लेख प्रथम और द्वितीय अंक में बड़े ही सारगरभित एवं विद्वतापूर्ण लगे।

मेरे प्रिय लेखक श्री इला चंद्र जोशी जी का पहाप्राण कवि निराला पर रोचक व अनूठा संस्मरण मन को आल्हादित कर गया। साथ ही उस महान कवि का अपने आक्रोश पर अचम्भित संतुलन जिसने श्री इला चंद्र जोशी जी को उनकी चपेट से बचा लिया हृदय को गुदगुदा गया।

पद्मश्री डा. यशोधर मठपाल जी से जोशी जी के साक्षातकार में डा. मठपाल जी की अभिव्यक्ति कि उनके लिए कला ईश्वर प्राप्ति का साधन है यदि हमें एक कला महर्षि का बोध कराता है तो महान लेखिका अमृता प्रीतम जी की अभिव्यक्ति कि “सच और परमात्मा को मैंने प्रेम के साथ साए की तरह आते हुए देखा है।” सच और ईश्वर का प्रेम में निरूपण कराता है।

पत्रिका में छपी कहानियां, कविताएं, गजलें और गीत, सब रुचिकर लगे। और सबसे अच्छी बात यह लगी कि पत्रिका में भाषा दोष नगण्य देखने को मिला जिसका श्रेय संपादक मंडल को जाता है।

कुल मिलाकर मुझे “सृजन से” एक उत्तम साहित्यिक पत्रिका लगी जिससे आशा की जा सकती है कि उसमें निरन्तर परिमार्जन होता रहेगा और साहित्यिक गुणवत्ता बढ़ती रहेगी।



सदैव शुभाकांक्षी
जय प्रकाश डंगवाल।


About SRUJAN Se..................

"सृजन से" साहित्य व कलात्मक विधाओं की एक अग्रणीय त्रैमासिक पत्रिका है। जिसका उद्देश्य सभी सृजनात्मक विधाओं को न केवल एक धरातल पर उकेर लाना है वरन उससे भी महत्वपूर्ण इन कलाओं की नयी पोंध के लिये भरपुर खाद पानी जुटाकर स्तरीय सृजन को प्रोत्साहन देना है। यह उत्तराखंड के कला सहित्य के साथ ही हिन्दी साहित्य, रंगमंच, चित्रकला, नृत्य संगीत तथा कला जगत की विभिन्न गतिविधियों की जानकारी कला प्रेमीयों तक लाने का प्रयास है।


"सृजन से" का यह कार्य मैग्ससे पुरुस्कार से सम्मानित पदम श्री दीप जोशी जी, ख्याति प्राप्त चित्रकार पदम श्री डां० यशोधर मठपाल जी, रंगमंच की वरिष्ठ हस्ती नईमा खान उप्रेती जी व गाज़ियाबाद के अपर जिला सुचना अधिकारी युगल किशोर जी के संरक्षण व मार्गदर्शन में हो रहा है।


अभी तक "सृजन से" के तीन अंकों में देश के अनेक वरिष्ठ व चर्चित लेखक, रचनाकार व चित्रकार जैसे कि पदम श्री डा० रमेश चन्द्र शाह, पदम श्री डा० यशोधर मठपाल, महेश दर्पण, दयानन्द अनंत, मोहमद सलीम, दिनेश दिवेदी, मंगलेश डबराल, डा० शिव ओम अम्बर, डा० कुंअर बेचैन, मनमोहन सरल, बंधु कुशावर्ती, डा० उर्मिल कुमार थपलियाल, दिनेश सिन्दल, गिरीश तिवारी "गिर्दा", कवि कुलवंत सिंह, मकबूल वाजिद, डा० नन्दकिशोर ढौडियाल, डा० आशा पांडेय इत्यादी अपना लेखकीय सहयोग दे रहे हैं।


बिना किसी के आर्थिक मदद से "सृजन से" के माध्यम से उत्कृष्ट रचनाओं एवं उभरते हुए युवा रचनाकारों को एक मंच प्रदान करने का सराहनीय प्रयास किया जा रहा है।


पत्रिका से सम्बधित विस्तृत जानकारी www.srujunse.blogspot.com पर प्राप्त की जा सकती है। अपनी उत्कृष्ट रचनाऎं "सृजन से" को भेजने हेतु आपsrujanse.patrika@gmail.com पर ई-मेल कर सकते हैं।