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Friday, February 25, 2011

'सृजन से' पत्रिका के अप्रैल-जून २०११ अंक के सन्दर्भ में....

"सृजन से" पत्रिका के सभी सहयोगियों को हर्ष के साथ सुचित किया जाता है कि "सृजन से" पत्रिका के अप्रैल-जून २०११ अंक की गतिविधियां शुरू हो गयी हैं। इस अंक हेतु स्तरीय गज़लों व कविताओं के लिए कुछ पृष्ठ सुनिश्चित किये गये हैं| इसलिये सभी महानुभावों से अनुरोध है कि पत्रिका के अप्रैल-जून २०११ अंक के लिये अपनी मौलिक व अप्रकाशित गज़लें व कविताएँ हमें १५ मार्च २०११ तक भेजने का कष्ट करें।

सभी रचनाकारों से निवेदन है कि पत्रिका के अगले अंक के लिये मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित घोषणा पत्र के साथ कम से कम ३ रचनायें भेजें जिनमें से संपादक मंडल द्वारा चयनित किन्ही १ या २ रचनाओं को प्रकाशित किया जाएगा।


धन्यवाद,
मीना पाण्डे
संपादक- 'सृजन से'
पता: एम-3, सी-61, वैष्णव अपार्टमेन्ट,
शालीमार गार्डन-2, साहिबाबाद
गाज़ियाबाद (उ० प्र०), पिन - २०१००५
ब्लॉग- www.srujunse.blogspot.com

Saturday, February 12, 2011

Feedback from Mahavir Uttaranchali ji....

’सृजन से’ का जुलाई-सितम्बर 2010 अंक देखा। साहित्यिक पत्रिका निकालने के लिए आपको तथा पूरी टीम को बधाई। कहानियाँ, कविताएँ, लेख, साक्षात्कार सभी स्तरीय हैं। कला-संस्कृति के माध्यम से आपने गढ़वाल के बाल लोक साहित्य से अवगत कराया, धन्यवाद।

महावीर उत्तरांचली
वसुन्धरा इनक्लेव (दिल्ली)

Feedback from Sriram Tiwari ji...

पत्रिका में रचनाओं की सचित्र प्रस्तुति उसे आकर्षक और पठनीय बना देती है। सामग्री का चयन सूझ-बूझ के साथ किया गया है। डा0 रमानाथ त्रिपाठी ने रवीन्द्र नाथ ठाकुर की कविता की व्याख्या की है उसमें एक छोटी बच्ची का चित्र उभर कर आता है वह मर्मस्पर्शी है। श्री भरत पटेल का लेख ज्ञानवर्धक और रोचक है।

श्रीराम तिवारी
ग्वालियर (म0प्र0)

Feedback from Bhagwat Prasad ji....

’सृजन से’ का स्मृति अंक मिला। विभिन्न साहित्यकारों के संस्मरण पढ़ने को मिले। यदि मुझे इसकी सूचना मिलती तो मैं भी कुछ भेजता। मेरे संस्मरण अतीत की झलकियां शीर्षक से छपे हैं। द्वितीय संस्करण निकल चुका है। अब में 91 वर्ष का हूँ। इस लम्बी जीवन यात्रा में क्या कुछ नहीं देखा, पढ़ा और सुना। कुछ लिखा बहुत कुछ अनलिखा रह गया है। अब तो इस यात्रा का अंतिम पड़ाव है। स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता अतः लेखन कम हो गया है। पत्रिका के सभी स्तम्भ आकर्षक हैं। नारी-विमर्श पर चर्चा तो बहुत हो रही है पर काम कम। हमें महादेवी वर्मा, गौरा पंत शिवानी की आवश्यकता है, राखी सावंत की नहीं। मैं अहमदाबाद में हूँ, बम्बई की देखा देखी यहाँ भी यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है। आधुनिक होते हुए भी भारतीय संस्कृति की रक्षा यहाँ की नारियाँ ही करेंगी।

भागवत प्रसाद मिश्र ’नियाज’
अहमदाबाद (गुजरात)

Feedback from Brij Kishor Ji...

’सृजन से’ का स्मृति अंक सामने है। मैने इस अंक की तमाम अच्छी पंक्तियों को रेखाँकित किया है और उनमें मेरी प्रति में पहला रेखाँकन सम्पादकीय की - प्राथमिक पंक्तियों पर हुआ। आपको बधाई। पुरा अंक कई दृष्टियांे से उल्लेखनीय है। विशेष रूप से मैं डॉ0 सुवर्ण रावत के संस्मरण, निशा बहुगुणा और मीनू जोशी की कविताओं तथा दुष्यन्त कुमार पर - डा0 शिव ओम अम्बर के लेख से प्रभावित हुआ हूँ। “अभिव्यंजनायें सभी बड़ी अदभुत हैं। द्वितीय पृष्ठ पर स्मृति शेष साहित्यकारों के चित्र देकर आपने अंक की उपयोगिता को और बढ़ा दिया है। अगले अंक का इन्तजार है।

बृजकिशोर सिंह ’किशोर’
फर्रूखाबाद (उ0प्र0)

Feedback from Ghanand Pandey Ji....

जुलाई-सितम्बर 2010 का अंक प्राप्त हुआ। धन्यवाद सहित आभार भी। एक कहावत है ‘‘गौंक लछिन ग्वैठा बटी‘‘ अर्थात किसी गाँव के लक्षण उस गाँव को जाने वाले मार्ग से ही पता लग जाते हैं। कहने का तात्पर्य यही है कि किसी पत्रिका की सफलता प्रथम दृष्ट्या उस की सफल सम्पादकीय है। ‘‘सृजन से‘‘ की सम्पादकीय अपने आप में श्रेष्टता को प्राप्त है। पत्रिका के हृदय में उद्दत समस्त सामग्री यथा-आलेख-कहानी, एकांकी-ग़ज़ल, कविता या फिर कला संस्कृति हो अथवा पत्रिका का कला पक्ष, ये सभी बेजोड़ हैं। डॉ0 शिव ओम ’अम्बर’ का वातायन और श्री धन सिंह मेहता ’अंजान’ की कहानी ‘भरोसे का आदमी‘ आदि सभी कुछ अपने आप में पठनीय हैं। कहीं-कहीं पर प्रूफ में त्रुटियाँ हैं जो आसानी से दूर हो सकती है। मैं पत्रिका की सफलता की कामना करता हूँ और यह भी कामना करता हूँ कि ‘सृजन से‘ समाज का सही मार्गदर्शन करने में सफल एवं सक्षम हो।

घनानन्द पाण्डेय ’मेघ’
लखनऊ (उ0प्र0)

Feedback from Brijendra Agnihotri ji...

’सृजन से’ का अक्टूबर-दिसम्बर 2010 अंक मिला। एक ही बार में पढ़ गया। लाजवाब संपादन, उत्कुष्ट रचना चयन....सच,साहित्य के संगम में डुबकी लगाते हुए कब आलेख, कहानी, ग़ज़ल, कविता, साक्षात्कार व समीक्षा के पड़ाव गुजर गये, पता ही न चला। रचनाकारों को स्मृति में बसाने का नायाब तरीका सीखा मैंने आपसे। दूरभाष पर आपसे वार्ता हुई थी। मधुराक्षर के कुछ पिछले अंक प्रथक डाक से भेज रहा हूँ। मिलने पर प्राप्ति सूचना जरूर दें।

बृजेन्द्र अग्निहोत्री
फतेहपुर(उ0प्र0)

Feedback from Chandra Bhushan Ji...

‘सृजन से‘ पत्रिका का अक्टूबर-दिसम्बर 2010 ’स्मृति अंक’ मिला। धन्यवाद। इस अंक को प्रख्यात कथाकार व पत्रकार मनोहर श्याम जोशी, उत्तराखण्ड के जनकवि गिरीश तिवारी ’गिर्दा’, कवि-पत्रकार कन्हैया लाल नन्दन, छायावादी कवि सुमित्रा नन्दन पंत और हिन्दी ग़ज़ल के आधार स्तम्भ दुष्यन्त कुमार जैसे रचनाकारों की स्मृति पर केन्द्रित करके आपने बहुत अच्छा कार्य किया है। इसके लिए ’सृजन से’ की पूरी टीम बधाई का पात्र है। इस अंक के लेख और कविताएँ भी पठनीय हैं। पत्रिका के नियमित प्रकाशन पर हम सभी की ओर से हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।

चन्द्र भूषण
दरियागंज (दिल्ली)

Feedback from Pradeep Pant Ji....

’सृजन से’ का अक्टूबर-दिसंबर 2010 का अंक मिला, इससे पहले भी अंक मिलते रहे हैं। सीमित पृष्ठों के बावजूद साहित्यिक, सांस्कृतिक और कला सम्बन्धी तथा अन्य मुद्दों की यह गंभीर और गरिमामय पत्रिका है। इस अंक में अब तक मनोहर श्याम जोशी पर पंकज बिष्ट, ’गिर्दा’ पर डॉ0 सुवर्ण रावत, दुष्यंत कुमार पर डॉ0 ’अंबर’ और कुमाऊँ की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा पर ललित मोहन पाण्डेय के लेख पढ़ लिए हैं। कुछ कविताएं और ग़ज़लें भी पढ़ीं। श्री ललित मोहन पाण्डेय ने आजादी के कुछ वर्ष पहले से कुछ वर्ष बाद तक के अल्मोड़ा के अविस्मरणीय संस्मरण लिखे हैं। वे थोड़ा और विस्तार से लिखते तो पाठकों को उस दौर की और भी अधिक जानकारी मिलती। तब के कलाकारों विशेषतः मोहन उप्रेती ने अपने अथक प्रयासों सें कुमाऊं के लोक संगीत और लोक नृत्यों को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित किया। ठीक ही लिखा है पाण्डेय जी ने कि तब मोहन उप्रेती द्वारा गाया गया ’बेडु पाको’ गीत पहाड़ में ही नहीं विदेशों तक में लोकप्रिय हो गया। उप्रेती जी ने इस गीत में समय की आवश्यकता के अनुसार कुछ परिवर्तन भी किये थे। बहरहाल....।

प्रदीप पंत
इस्ट ऑफ कैलाश (नई दिल्ली)

Wednesday, February 2, 2011

जन०-मार्च २०११ अंक की विशेष सामग्री.....

"सृजन से"...
"सृजनात्मक विधाओं की संवाहक" त्रैमासिक पत्रिका

साहित्य आलेख-
१. शराफ़त अली खान जी का आलेख- स्त्री संसार की दुर्लभ चीज है।
२. इरानी महिला कथाकारों पर भीष्म कुकरेती जी का आलेख (विश्व साहित्य)।
३. प्रख्यात लेखिका पुष्पा सक्सेना जी पर डा० इला प्रसाद का संस्मरण।
४. दलित महिला विमर्श पर रामशिव मुर्ति यादव जी का आलेख।

संस्कृति- चिपको वुमेन गौरा देवी पर वरिष्ठ लेखिका बीणापाणी जोशी जी का आलेख।

वातायन स्तम्भ- हिन्दी की प्रख्यात कवियत्री महियसी महादेवी वर्मा जी पर डा० शिव ओम अम्बर जी का आलेख।

कहानियां- अर्चना पैन्यूली जी (डेनमार्क), रचना श्रीवास्तव जी (यू०एस०ए०) व हेमन्त जोशी जी (उत्तराखन्ड)।

साक्षात्कार- अन्तरराष्टीय ख्याति प्राप्त कथक नृत्य गुरू पुर्णिमा पाण्डे जी से उनके नृत्य संगीत पर दीपा जोशी जी की लम्बी बातचीत के अंश।

रंगमंच: राष्ट्रीय नाट्य विधालय की अपनी स्मृतियों में वरिष्ठ रंगकृमी नईमा खान उप्रेती जी का आलेख।

विशेष (वार्तालाप): पुरुष प्रधान समाज में अपनी अस्मिता को बनाये रखने के लिये महिलाओं को विशेष संघर्ष करना पडता है।

विषय पर अपने-अपने क्षेत्र विशेष में उल्लेखनीय योगदान दे रही महिलायें जैसे श्रीमती ईरा पाण्डे जी - लेखिका, श्रीमती अनामिका जी - लेखिका, श्रीमती प्रज्ञा वर्थवाल ध्यानी एड्वर्टाइजिंग, श्रीमती बेला नेगी जी - फ़िल्म मेकर व राइटर, श्रीमती नईमा खान उप्रेती जी - वरिष्ठ रंगकृमी, श्रीमती पुर्णिमा पाण्डे जी - कथक नृत्य गुरू व श्रीमती शबनम मेहरा- चित्रकार इत्यादि के विचार।

गज़ल विथि- वर्षा सिंह जी व मधुरिमा जी की गज़लें।

समाज सरोकार- आजादी के आन्दोलन में महिलाओं की भुमिका पर अकांक्षा यादव जी का आलेख।

कवितायें- श्रीमती सरोजनी नौटियाल (रूडकी), डा० प्रभा मुजुमदार (अहमदाबाद) इत्यादि की कवितायें।

इसके साथ ही कई नये व प्रतिष्ठित रचनाकारों जैसे श्री दिनेश पाठक -रामनगर (संगीत), श्री दीपक मशाल - आयरलेंड (लघुकथा), श्री सुनील गज्जाणी-बिकानेर-राज०(लघुकथा), श्री विनोद सिंह बिष्ट-उत्तराखंड (लोक सहित्य) आदि की रचनायें/लेख इस अंक मे देखे जा सकते हैं।

सभी साहित्यकारों,रचनाकारों व कलाकारों से निवेदन है कि पत्रिका के अगले अंको के लिये स्तरीय, मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित रचनायें/लेख/कहानियां इत्यादि उपलब्ध करायें।


पता: एम-3, सी-61, वैष्णव अपार्टमेन्ट,
शालीमार गार्डन-2, साहिबाबाद,
गाज़ियाबाद (उ० प्र०)
पिन कोड -२०१००५