जुलाई-सितम्बर 2010 का अंक प्राप्त हुआ। धन्यवाद सहित आभार भी। एक कहावत है ‘‘गौंक लछिन ग्वैठा बटी‘‘ अर्थात किसी गाँव के लक्षण उस गाँव को जाने वाले मार्ग से ही पता लग जाते हैं। कहने का तात्पर्य यही है कि किसी पत्रिका की सफलता प्रथम दृष्ट्या उस की सफल सम्पादकीय है। ‘‘सृजन से‘‘ की सम्पादकीय अपने आप में श्रेष्टता को प्राप्त है। पत्रिका के हृदय में उद्दत समस्त सामग्री यथा-आलेख-कहानी, एकांकी-ग़ज़ल, कविता या फिर कला संस्कृति हो अथवा पत्रिका का कला पक्ष, ये सभी बेजोड़ हैं। डॉ0 शिव ओम ’अम्बर’ का वातायन और श्री धन सिंह मेहता ’अंजान’ की कहानी ‘भरोसे का आदमी‘ आदि सभी कुछ अपने आप में पठनीय हैं। कहीं-कहीं पर प्रूफ में त्रुटियाँ हैं जो आसानी से दूर हो सकती है। मैं पत्रिका की सफलता की कामना करता हूँ और यह भी कामना करता हूँ कि ‘सृजन से‘ समाज का सही मार्गदर्शन करने में सफल एवं सक्षम हो।
घनानन्द पाण्डेय ’मेघ’
लखनऊ (उ0प्र0)
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