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Monday, December 13, 2010

पान्चजन्य में "सृजन से" पत्रिका के स्मृति अंक पर आधारित आलेख...

दोस्तो,
देश की बहुप्रसारित हिन्दी साप्ताहिक पत्रिका "पान्चजन्य" (५ से १२ दिसंबर) में "सृजन से" पत्रिका के "स्मृति अंक" (४वां अंक) पर आधारित समीक्षात्मक आलेख संलग्न है....





Team Srujun Se

Srujan Se ke Mahila Visheshank hetu Rachna Amantran . Invitation for Contribution for Women Special Issue for Srijan se

मित्रो !
आपको प्र्स्सन्न्ता होगी कि हिंदी की मूर्धन्य पत्रिका "सृजन से "का अग्गामी अंक महिला विशेषांक होगा....
आपसे निवेदन है क़ि इस सामयिक विशेषांक हेतु महिला सम्बन्धी रचनाएँ भेजकर हमें अनुग्रहित कीजिएगा..
इस अंक का एक मकसद यह भी है क़ि उन महिलाओं को सामने लाया जाय जिन्होंने समाज के लिए काम किया किन्तु किन्ही कारण बस उन्हें वह पहचान नही मिली जिसके वे हकदार थीं इस अंक में महिला सम्बन्धी कथाएं, महिला सम्बन्धी कविताएँ, महिला सम्बन्धी लघु नाटक, महिला सम्बन्धी चित्रकला, आलेख, जीवनी, विचारोत्तेजक लेख (जैसे महिला अधिकार), भारतीय महिलाओं की Globalization में अहम भूमिका, ग्रामीण महिलाओं का आगामी दशकों में सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र में नई भूमिका , विश्वीकरण में अंतरजातीय विवाह, तलाक से महिलाओं को विशेष त्रासदी , आधुनिक महिलाओं का विन विवाह के किसी मर्द के साथ में रहना का औचित्य, आधुनिकता और संस्कृति के बीच पिसतीं आधुनिक महिलाएं
जब महिलाओं को Commodity मान लिया जाता है . भारतीय गाथाओं, पुरातन साहित्य में महिलाओं क़ि भूमिका आज के साहित्य में महिलाओं को किस रूप में दर्शाया जा रहा है ?
क्या टी वी सीरियलों में महिलाओं को सही रूप से चित्रित किया जा रहा है ?

ग्रामीण महिलाओं का हिंदी फिल्मों में चरित्र चित्रं कहाँ तक सही होता रहा है ? महिला व्यंग्य चित्रकार . चित्रकार या अन्य कलाओं में महिलाओं का योगदान विभिन्न लोकबोलियों के लोक साहित्य में महिलाओं का चरित्र चित्रण भारत में महिला अधिकार आन्दोलन का इतिहास और सफलताएँ जैसे कई विषय हैं जिन पर आप अपनी रचना भेज सकते हैं.

आपसे निवेदन है क़ि आपने साहित्यिक मित्रों को सृजन से की इस पहल की सूचना दे कर हमे कृतार्थ कीजियेगा

संपर्क सूत्र
संपादिका श्रीमती मीना पांडे
M -3 M.I .G Flats, C61
Vaishnav Appartment
Shalimar garden II
Shahibabad
Ghaziabad
UP, pin 201005
Phone 9891542797

Thursday, December 2, 2010

Feedback from Ramesh Chandra Shah ji---

दोनों अंक अभी हफ्ता भर पहले ही मिले हैं। धन्यवाद। नईमा जी से बड़ा मार्मिक साक्षात्कार आपने लिया- पढ़कर बहुत अच्छा लगा।कई बातें मालूम हुई जो नहीं जानता था। दयानंद अनंत की कहानी ‘रुपयों का पेड़‘ अच्छी लगी। चेखव की सभी कहानियाँ मेरी पढ़ी हुई हैं- पता नहीं कैसे इस कहानी को पढ़े होने की याद नहीं। अद्भुत कहानी है। मेरा सुझाव है प्रत्येक अंक में ऐसी ही एक जबरदस्त कहानी विश्व-साहित्य के भण्डार से निकाल चुनकर अपने पाठकों को परोसा करें। इससे पाठकों की संवेदना का परिष्कार एवं विस्तार होगा। पत्रिका का आकर्षण भी बढ़ेगा। इस वक्त प्रवेशांक सामने नहीं है। कई चीजें पढ़ी थी, हाँ दीप जोशी पर लेख मेरे लिए नई जानकारी- आपके पाठकों के लिए भी प्रेरणास्पद था। इस तरह के प्रेरक पोट्रेट भी होने चाहिए, सही यथार्थ गौरव-बोध और आत्मविश्वास जगाने वाली सामग्री जीवनीपरक। ब्रजमोहन साह के काम को याद किया- अच्छा लगा। भाई मो0 सलीम को उनके बचपन से जानता रहा हूँ। इस अंक में हेमन्त ने यशोधर मठपाल का साक्षात्कार लिया है, पहली बार इनके बारे में जरुरी जानकारी देती सामग्री छपी देखी। हेमन्त ने सही जगहों पर कुरेदा, विस्तृत और प्रेरणादायी जीवन और कर्म के विविध पहलुओं को खोला, उनका जीवन पहाड़ के युवकों के लिये अनुकरणीय होना चाहिये। संग्रहालय उनका मेरा देखा हुआ है उसे लेकर उनकी चिन्ता वाजिफ है, कलेश उपजाती है। उत्तराखण्ड सरकार के हित में ही है, यह कि वह अविलम्ब उसके संरक्षण की व्यवस्था करे और उन्हें चिन्तामुक्त करे। यह उसका दायित्व है। सृजन परिक्रमा के अंतर्गत नितिन जोशी की यह समझबूझ भरी टिप्पणी कि “गोविन्द चन्द्र पाण्डेय अपने जीवन व्यापी अत्यन्त मूल्यवान और स्थायी महत्व के कृतत्व के लिये इस विलम्बित पदम्श्री से कहीं अधिक और उच्चतर सम्मान के अधिकारी थे”। प्रश्न चिन्ह तो लगता ही है इन चयन समितियों पर निसंदेह। मैं नहीं समझता गोविन्द चन्द्र जी के समकक्ष कोई दूसरा विद्धान उस क्षेत्र का इस देश में वर्तमान होगा। यह मैं सुनी सुनाई नहीं कहता उनके कृतित्व के समझबूझ के पक्के आधार पर कह रहा हूँ। वे अनुठे विद्धान ही नहीं अनूठे कवि और अनुवादक भी हैं- यह कितने लोग जानते हैं? स्वयं अपने पहाड़ के ही एकेडेमिक व साहित्यिक क्षेत्रों में कार्यरत कितने लोग उनके किये धरे का महत्व जानते होंगे? कितनों ने उनके वेद के संस्कृत काव्य अतुलनिय काव्यानुवादों को पड़ा होगा? मुझे कतई भरोसा नहीं है इसका। तो फिर हम किस संस्कृति की बात करते हैं? जो उसे उपजाते हैं सचमुच के सर्जक और उनवेषक हैं उसके, उन्हीं का गुण-ज्ञान नहीं बिल्कुल तो फिर हमारे जीवन की, गतिविधियों की क्या कीमत है? जो कृतज्ञ नहीं, उसकी कर्मठता भी (तथाकथित) क्या होगी? किसी आंचलिक संकीर्ण आग्रह से नहीं, बल्कि कितना सार्वदेशीक और व्यापक दृष्टि वाला संस्कार है इस अंचल से जुड़ी ऐसी विभूतियों का इसका कुछ तो बोध नई पीड़ी को हो। मुझे लगता है पहाड़ से जुड़ी साहित्यिक पत्रकारिता इस स्तर की चेतना उपजाने में सहायक हो सकती है, होना चाहिये। पुनश्चः अंक सामने नही है और स्मृति इन दिनों गड़बड़ हो जाती है। मो0 सलीम पर जो मैंने पड़ा- अत्यंत भावोत्तेजक, और पुनः ही पुरानी यादें जगाता लेख, वह आप की ही पत्रिका में पड़ा था या अन्यत्र? जहाँ तक स्मृति साथ देती है, आपके ही प्रवेशांक में पड़ा था। ठीक है ना? क्या ये अल्मोड़ा में हैं अभी? या लखनऊ में? मैं एक माह उधर रहूँगा इसीलिये पूँछ रहा हूँ। बस तो, आपके प्रयत्नों के सफलता हेतु शुभकामनायें।

पद्मश्री डा0 रमेश चन्द्र शाह,
भोपाल (म0प्र0)

Feedback from Ashok Yadav ji....

कुछ दिनों पूर्व आप के सम्पादक में निकलने वाली पत्रिका ‘‘सृजन से‘‘ मिली। अपनी एक गज़ल को उसमें देखा तो बहुत प्रसन्नता हुई। इसके लिये आप को धन्यवाद प्रेषित कर रहा हूँं। आप बधाई की पात्र हैं जो एक साहित्यिक पत्रिका निकालने का आपने सफल प्रयास किया है। हालांकि आज के दौर में साहित्यिक पत्रिका निकालना एक कठिन कार्य है लेकिन कोई कार्य पूर्ण मनोयोग एवं सकारात्मक सोच के साथ किया जाये तो सफलता अवश्य मिलती है। आपको पत्रिका की उन्नति के लिये हार्दिक शुभकामनायें प्रेषित कर रहा हूँ।

अशोक यादव
इटावा (उ.प्र.)

Feedback from Sharafat Ali Khan ji..

‘सृजन से....‘ जु0सि0 2010 अंक मिला पत्रिका अपने पहले वर्ष में ही सामग्री और साजसज्जा के साथ हिंदी की श्रेष्ठ पत्रिकाओं की कतार में खड़ी नजर आने लगी है। साहित्य की सभी विधाओं से सुसज्जित पत्रिका निःसन्देह साहित्य जगत में अपना अलग स्थान बनाए रखेगी, ऐसी कामना है, दादर पुल का बच्चा -बी. बीट्ठल ने जीजीविषा की नयी परिभाषा से अकाग्र कराया। संघर्ष व्यक्ति को कैसे निखारता है उसका ज्वलंत उदाहरण है बी. बीट्ठल।


शराफत अली खान
बरेली (उत्तर प्रदेश)

Feedback from Meenu Joshi...

‘‘सृजन से‘‘ पत्रिका के प्रथम एवं द्वितीय दोनों अंक प्राप्त हुए। पढ़कर ऐसा लगा कि काफी लम्बे समयान्तराल के बाद हिन्दी की स्तरीय पत्रिका पढ़ी, साहित्य प्रेमियों के लिए यह एक शुभ संकेत है। साहित्य मर्मज्ञों के साथ नव सृजक भी इस पत्रिका में अपना स्थान सुरक्षित देखकर काफी उत्साहित एवं प्रेरित होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। लोकसंस्कृति, साहित्य, कला, रंगमंच का इतना सुन्दर समागम पत्रिका के उज्जवल भविष्य को परिलक्षित करता है। संपादकीय में मीना पाण्डे जी का ‘एक जोडी ताजा आँखों का लोभ’ नवीन पीढ़ी व नव सृजनकर्ताओं के लिए अवश्य ही प्रेरणा का कार्य करेगा। पत्रिका के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए संपादक मंडल को हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ। साथ ही सृजन एवं पठन के माध्यम से पत्रिका से जुड़ना चाहती हूँ।

मीनू जोशी
अल्मोड़ा (उत्तराखंड)

Feedback from Ashok 'Anjum'...

“सृजन से” का जुलाई-सितम्बर अंक पाया प्रसन्नता हुई। मृदुला गर्ग जी का साक्षात्कार अंक की उपलब्धि है। श्री आलोक शुक्ल की कविता ‘डेमोक्रेसी’ प्रजातंत्र का बड़ा मार्मिक चित्रण है। अन्य रचनाएं भी मार्मिक हैं। गद्य पद्य पर भारी लगा।

अशोक ‘अंजुम’
अलीगढ़ (उ0प्र0)

Feedback from Aacharya Darshney Lokesh Ji....

‘सृजन से‘ के अवलोकनार्थ प्रेषित अंक मिला धन्यवाद। पृष्ठ 43 पर ‘‘पहचान एक सही तिथि पत्रक की” जो कि मेरा ही लेख है, को प्रकाशित देखकर अति प्रसन्नता हुई, बहुत कम सम्पादक हैं जो कि मेरे लेख प्रकाशित करने का साहस रखते हैं। मैं धारा के विपरीत बहने की प्रचलन के विपरीत चलने की किन्तु सत्यार्थ और यथार्थ के पक्ष में अन्वेषण की बात करता हँू। आपका मार्ग सत्य के पक्ष में अधिक ही गुरूतर और प्रशंसनीय बनता है। मुझे अब उम्मीद करनी चाहिए कि आप जैसे लोग वैचारिक क्रान्त्ति के इस प्रयास में आगे ही रहंेगे। ज्योतिष की गभ्भीर त्रुटियों को दूर कर एक सत्य शुद्ध ‘‘पंचांग‘‘ दे पाने के सर्वथा अद्वितीय एवं अन्यतम प्रयास का नाम है ‘‘श्री मोहन कृति आर्ष तिथी पत्रक‘‘। समाज और संस्कृति के हित में आचार्य दार्शनेय लोकेश आपका उतना ही अधिक आभारी रहेगा जितना ही अधिक आपका प्रयास इस वैदिक तिथि पत्रक की सामाजिक प्रतिष्ठा करने में सहयोगी सिद्ध होगा। सत्य ये है कि भारत की धरती में ‘पंचांग’ नाम से जो भी कुछ प्रकाशित किया जा रहा है वह सब यथार्थ और सत्य से अलग केवल भ्रमात्मक प्रकाशन हैं। फलित ज्योतिष के लिए जिस भचक्र को लिया गया है वह बृहमाण्ड में कहीं नहीं है। कुल मिला कर कभी तो लगता है ज्योतिषी क्या उस व्यक्ति को तो नहीं कहा जाता है जो कि ज्योतिष के यथार्थ को जानता ही नहीं है। ये बातें कटुता हो सकती हैं किन्तु असत्य नहीं। संलग्न पत्रकों का ठीक अवलोकन करने पर यही कुछ आपको भी स्पष्ट हो जायेगा।


आचार्य दार्शनेय लोकेश
ग्रेटर नौएडा (उ0प्र0)

Feedback from Prakash Pant Ji....

मैंने त्रैमासिक पत्रिका “सृजन से...” का अवलोकन किया। पत्रिका में नाम के अनुरूप उच्चकोटी के साहित्य के द्वारा मानवीय जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास किया गया है। पत्रिका में मानव जीवन के विभिन्न रंगो का समावेश करते हुए सम्पादक मण्डल ने साहित्य से जुड़े एवं सम्बन्ध रखने वाले व्यक्तियों के लिए ज्ञानार्जन रूपी महल के निर्माण में ईंट लगाकर अपना योगदान देने का प्रयास किया है। “सृजन से...” उत्तराखण्ड की संस्कृति, सांस्कृतिक परम्पराओं तथा धरोहर को आम जनमानस तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभायेगी ऐसा मेरा मानना है। मुझे विश्वास है कि पत्रिका “सृजन से...” बुद्धिजीवियों के देश/राज्यों के सम-सामयिक विषयों पर लेख, विचार तथा सुझाव प्रकाशित कर उत्तरोत्तर प्रगति करते हुए समाज में अपनी एक पहचान बनाने में सफल होगी। सम्पादक मण्डल को पत्रिका के सफल सम्पादन हेतु मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं।

प्रकाश पन्त, (मंत्री)
उत्तराखंड विधानसभा

Feedback from Bhagwat Prasad Misra 'Niyaj' Ji....

‘सृजन से‘‘ का जुलाई-सितस्बर 2010 अंक प्राप्त हुआ। साहित्य के क्षेत्र में इस नई पत्रिका का स्वागत है। स्त्री विमर्श से सम्बन्धित मृदुला गर्ग जी के उठाये मुद्दे विचारणीय हैं। आज नारी सेसम्बन्धित हमारा समाज हमारी संस्कृति और हमारा साहित्य संक्रमणकाल से गुजर रहा है। इस सब में नारी की भूमिका क्या और कितनी हैं, इसका निर्णय स्वयं नारी को ही करना होगा। इस संबंध में मुझे एक पौराणिक प्रसंग याद आता है। सती अनुसूया की तपस्या से घबराकर उनकी परीक्षा लेने हमारे त्रिदेव-ब्रहमा, विष्णु और शिव पहुँचे और उनसे निर्वस्त्र होकर उनके सामने उपस्थित होने को कहा। अनुसूया ने अपनी तपस्या के बल पर उन्हें हंसते खेलते शिशुओं में बदल दिया और मातृस्वरूप उन्हें निर्वस्त्र रिझाने लगीं। त्रिदेवों ने उनसे क्षमा मांगी और माता के रूप में उनका नमन किया। तो मीना जी हम आज भी जहाँ इस शक्ति के दर्शन करते हैं। मस्तक अपने आप झुक जाता है। पत्रिका के सभी स्तम्भ अत्यंत उपयोगी और रोचक हैं। आप यदि चाहें तो अध्यात्म पर भी एक स्तत्भ रख सकती है.

भागवत प्रसाद मिश्र ‘नियाज’
अहमदाबाद (गुजरात)

Feedback from Nandan Singh Rawat Ji....

कोटद्वार महोत्सव फरवरी 2010 के अवसर पर प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना विदुषी दीपा जोशी जी अपना कार्यक्रम प्रस्तुत, करने कोटद्वार पहुंची थी उसी दौरान उन्ही के माध्यम से ‘‘सृजन सें‘‘ त्रैमासिक पत्रिका मुझे प्राप्त हुई थी। सबसे पहले मैं श्रीमती दीपा जोशी जी व श्री हेमन्त जोशी जी का हार्दिक धन्यवाद करता हूँ जिन्हांेने मुझे सामाजिक सरोकारांे से आम जन को सम्प्रेरित करने में अति सक्षम साहित्यिक व सांस्कृतिक पत्रिका ‘सृजन से’ से अवगत कराया। वास्तव में पत्रिका के रूप में यह अनोखा सृजन है। कवर पृष्ठ कागज व छपाई के आधार पर जहाँ पत्रिका का भौतिक कलेवर शसक्त हुआ है वही श्रेणेत्तर कलाकारांे, साहित्यकारों व विभिन्न विषय के विद्वानों की श्रेष्ठ रचनाओं से पत्रिका का बौद्धिक कलेवर भी शसक्त हुआ है। आवरण के रूप में साहित्य और कला का आधार पाकर पत्रिका निश्चित रूप से अपने निर्धारित उद्वेश्य को प्राप्त करने मे सफल सिद्ध होगी ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।

अपनी शतसः हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।


नन्दन सिंह रावत
कोटद्वार (उत्तराखंड)

Wednesday, December 1, 2010

Feedback from Sunil Gajjani

''सृजन से '' पत्रिका का अंक ४ वां अंक मुझे प्राप्त हुआ, अगर इसकी अंक संख्या पे गौर नहीं किया जाए तो लगता ही नहीं कि '' सृजन से '' मात्र चौथा अंक नहीं ४०० वाँ अंक है ये , साहित्यिक दृष्टी से भी देखे तो ये अगर निरंतर यू ही अपना सार्थक '' साहित्यक रूप में '' प्रदान करती रही तो ''सृजन से'' सीघ्र ही साहित्यक की श्रेष्ठ पत्रिकाओं में शामिल होगी, ये हमारी कामना है. हां, एक अधूरापन सा लगा कि अगर रचनाकार का साहित्यक परिचय के साथ-साथ पूरा संपर्क सूत्र भी प्रदान करे तो रचना के प्रति अपना साधुवाद भी उनको प्रेषित किया जा सके. अन्यथा भी सुंदर है, पुनः '' सृजन से ' के उज्जवल भविष्य के लिए हार्दिक

शुभकामनाये .
सादर !

Sunil Gajjani
President Buniyad Sahitya & Kala Sansthan, Bikaner
Bikaner (Raj.)