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Thursday, November 24, 2011

Mahdevi Verma and Mohan Upreti Special Issue of Srujan Se: A Need of the Hour

(Review of Srujan Se Magazine issue dedicated to Mahadevi Verma and Mohan Upreti )

Bhishma Kukreti

The present literature is sensing turmoil today. The literature creators and readers of past generation never imagined the present situation when languages, language’s owned phrases, traditional literature of all languages specially subjects, means and methods of telling the realities and forms are on the cross roads to find new methodologies to be relevant with Internet medium and its strength, television channels and their way of releasing information or their strength of engaging audience, the literature available through mobile phones. The non specialized literature magazines as Srujan Se are also facing new problems for reaching readers who are already engaged with various new medium which excite them instantly. Global economic trends making unheard hurdles for magazines as Srujan Se, hurdles specially the readers coming out from cultural, national, religious, cocoons and now believing that there is possibility of one world, one language and one culture. Readers of new generation are more demanding and extrovert than last year.

In such situation when poetry, stories, reports, columns and other facets of literature of all languages and dialects are facing a dilemma, Srujan Se one of the finest magazines of Hindi language brought a special issue on Mahadevi Verma and folk literature activist Mohan Upreti and made the magazine relevant at this juncture.

In philosophy specially Vigyan Bhairav and in modern marketing, the intellectuals suggest that when there is confusion, when there is ups and downs go to your basic root and settle for the time beings till your customers (readers) start believing on you. In this present situation, it is essential that literature magazines that they serve readers with past trends and provide new trendy literature too because when there is turmoil the bridged subject of present trendy subject with tested and trusted past means and methods make the literature more relevant than providing either old ones or present trendy ones only. As Mahatma Gandhi found new methods through old Indian tradition of non violence to fight with might British. Gandhi’s weapons to fight with turmoil were very simple that principle was of oldest form and means were modern and relevant to new world. The way Mahdevi Verma and Mohan Upreti came out in their facets of fields and the way they could achieve their accomplishments are very important for literature creators and readers as well. They both believed on basics of humanity and used newest forms of means of their time and became successful that today, Srujan Se one of the excellent Hindi magazines of this decade brought special issue for paying homage to path breakers (Mahadevi and Mohan) of their time.

The write ups of Nagendra dwivedi, Chameli Jugran, Lakshman Singh Bisht , Tilak Joshi, Ram Kumar Verma, Shiv Om Ambar and articles and poems of Mahdevi Verma about Mahdevi provide the real insight of Mahadevi Verma as a fine human being , as a strong observer, as struggler, as a world class poet.

Same way, the articles of Ram gopal Bajaj, B B karanth, Girish Tiwari, Shamshul Islam Deepa Joshi are very much successful in opening up the insight of Mohan Upreti and his passion for folk music and culture.

The contributions of Rajkumari Sharma, Devendra Mishra, Chandsheri, Shailaja, Amrohavi, Nagrani, Jai Prakash, Kilshreshtha, Keshav Sharan, Ravi Pandey, Hemant Joshi , Endre Ilesh, Anju Mishra, Hari Datt Bhat , DD Sharma are the means of making Srujan Se one the relevant Hindi magazines at this time.

Specail mention is necessary about the article of Dr V k Joshi for saving environment. Usually it is seen that environmentalists write or talk in complex language and common man can’t understand their languages. However, Dr V K Joshi has been successful in using simple phrases to make understand the article with ease. The editorial is fine example of writing editorial.

Congratualtion! To srujan Se team for bringing such fine issue.

This author request all to read special issue about Mahadevi Verma and Mohan Upreti of Srujan se magazine

Srujan se (July- December 2011 issue)

M-3 M.I.G. Flat C-61

Vaishnav Apartment

Shalimar Garden II

Sahibabad

Dist Ghaziabad

Uttarpradesh

Pin 201005

Phone 09891542797


Regards
B. C. Kukreti

Sunday, September 25, 2011

परिक्रमा

महादेवी वर्मा का स्मरण-


महादेवी वर्मा का स्मरण-
१. तुमको पीडा में ढूंढा (नागेन्द्र प्रसाद द्विवेदी)
२. मां जैसी महादेवी (चमेली जुगरान)
३. नीलू- कहानी (महादेवी वर्मा)
४. सुभद्रा- संस्मरण (महादेवी वर्मा)
५. चुनिन्दा कवितायें (महादेवी वर्मा)
६. महादेवी वर्मा का स्त्री पक्ष (लक्ष्मण सिंह बिष्ट ’बटरोही’)
७. छायावादी काव्यधारा और महादेवी वर्मा (डा० तिलक राज जोशी)
८. हिन्दी का आधार स्तम्भ (रामकुमार वर्मा)

सृजन से- जुलाई-दिसम्बर २०११ (संयुक्तांक) की विशेष सामग्री...


"सृजन से"...
"सृजनात्मक विधाओं की संवाहक" त्रैमासिक पत्रिका

महादेवी वर्मा का स्मरण-
१. तुमको पीडा में ढूंढा (नागेन्द्र प्रसाद द्विवेदी)
२. मां जैसी महादेवी (चमेली जुगरान)
३. नीलू- कहानी (महादेवी वर्मा)
४. सुभद्रा- संस्मरण (महादेवी वर्मा)
५. चुनिन्दा कवितायें (महादेवी वर्मा)
६. महादेवी वर्मा का स्त्री पक्ष (लक्ष्मण सिंह बिष्ट ’बटरोही’)
७. छायावादी काव्यधारा और महादेवी वर्मा (डा० तिलक राज जोशी)
८. हिन्दी का आधार स्तम्भ (रामकुमार वर्मा)

वातायन- गाथा- महियसी महादेवी की प्रतिमा प्रतिष्ठा की (डा० शिव ओम अम्बर)।

कहानी- रेशमी साडी (देवेन्द्र कुमार मिश्रा)।

रू-ब-रू- वरिष्ठ साहित्यकार डा० रमेश चन्द्र शाह से उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर हेमन्त जोशी जी की लम्बी बातचीत के अंश।

गज़लें - डा० चांद कुमारी शर्मा ’चांद’, चांद ’शेरी’, शैलजा नरहरि, नरहरि अमरोहवी व देवी नागरानी।

भूमण्डल- कितना स्थिरप्रग्य है उत्तराखण्ड (डा० वी० के० जोशी)।

कवितायें- जय प्रकाश ’मानस’, राजीव कुलश्रेष्ट ’राज’, रवि पाण्डेय व केशव शरण।

रंगमंच- १. भारतीय रंगमंच: एक बहुरंगी रंग यात्रा (डा० हरिदत्त भट्ट ’शैलेश’) ।
२. उत्तराखंड में रंगमंच (जहूर आलम)

स्मृतियों में मोहन उप्रेती-
१. पूरा व्यक्तित्व ही मनभावक था मोहन उप्रेती का (रामगोपाल बजाज)।
२. रंगमंच की दुनियां के एक प्रमुख हस्ताक्षर (ब० ब० कारन्त)।
३. जनता के सामने रखने लायक है ’मोहन दा’ का व्यक्तित्व व कृतित्व (गिरीश तिवाडी ’गिर्दा’)।
४. मोहन उप्रेती के बहाने लोक संस्कृति (प्रो० डा० शम्सुल इस्लाम)।
५. अल्मोडा के सांस्कृतिक इतिहास का महत्वपूर्ण स्तम्भ मोहन उप्रेती (दीपा जोशी)।

पुस्तक समीक्षा- केदारखण्ड एक ज्ञानवर्धक एवं अभूतपूर्व प्रयास (प्रो० डी० डी० शर्मा)।

स्मृति शेष- एम० एफ़० हुसैन, भगवत प्रसाद ’नियाज़’ व दिनेश चन्द्र जोशी ’कन्नू उस्ताद’ को भावपूर्ण श्रद्वाजलि

सभी साहित्यकारों,रचनाकारों व कलाकारों से निवेदन है कि पत्रिका के अगले अंको के लिये स्तरीय, मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित रचनायें/लेख/कहानियां इत्यादि उपलब्ध करायें।


पता: एम-3, सी-61, वैष्णव अपार्टमेन्ट,
शालीमार गार्डन-2, साहिबाबाद,
गाज़ियाबाद (उ० प्र०)
पिन कोड -२०१००५

Sunday, July 17, 2011

सृजन से ... दो बातें

सृजन से... का सृजन सुसज्जित ५२ पृष्ठीय अप्रैल -जून २०११ अंक पंद्रह काव्य सृजनों एवं छै ग़ज़लों तथा अन्य नियमित पठनीय साहित्य लेकर आया. सम्पादक की 'मित्रवत दो बातें' सृजन से...के पाठकों के समक्ष आते ही बहुत कुछ कह देती हैं. एक नई सोच के साथ कुछ कर गुजरने का जज्बा लेकर संपादक सभी रचनाकारों को सृजन से जोड़ते हुए शिष्ट संपादन धर्म का परिचय दे रही हैं. सूक्ष्म में एक बात कहूं तो चलूँ-

दरिया की तरह तू बहता चल
बीहड़ में राह बनता चल ,
भटका राही जो देखे तुझे
कर उसका पथ प्रदर्शन तू.
कर खुद अपना सञ्चालन तू.

पूरन चन्द्र कांडपाल

Tuesday, May 3, 2011

April'11 to June'11 Edition

April'11 to June'11 Edition

'सृजन से' अप्रैल-जून २०११ अंक की विशेष सामग्री....

"सृजन से"...
"सृजनात्मक विधाओं की संवाहक" त्रैमासिक पत्रिका....

आलेख-
१. डा० रेखा मिश्रा का आलेख- नग्न यथार्थ का पारदर्शी कथाकार शैलेश मटियानी।
२. साहित्य में नोबल पुरूस्कार प्राप्त पर्ल एस0 बक पर श्री जय प्रकाश डंगवाल का आलेख (विश्व साहित्य)।
३. कविवर सुमित्रा नन्दन पन्त जी पर श्री प्रदीप पन्त का आलेख।
४. सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय जी पर डा० रमा नवले का आलेख।
५. दक्षिण कोरियाई लेखिका डा0 संगओंक होंग का भगवान राम पर विशेष आलेख।
६. भारतीय संगीत पर संगीत विशेषज्ञ डा० सुधीर कुमार बर्मा जी का आलेख।

चित्रकला: भारतीय शैलचित्र पर पद्मश्री डा0 यशोधर मठपाल का आलेख।

वातायन स्तम्भ- हिन्दी की प्रख्यात कवि, लेखक पद्मा भूषण गोपाल दास नीरज जी पर डा० शिव ओम अम्बर का आलेख।

साक्षात्कार- हिंदी के वरिष्ठ लेखक/कथाकार डा० देवेश ठाकुर से डा० राजेश्वर उनियाल की लम्बी बातचीत के अंश।

गज़लें - डा० शिव ओम अम्बर (फर्रूखाबाद), इब्राहीम अश्क (मुंबई), अशोक अंजुम (अलीगढ), महावीर उत्तरांचली (दिल्ली) इत्यादि की गज़लें।

कविता विशेष- श्रीमती चमेली जुगरान (दिल्ली), श्री बृजेन्द्र अग्निहोत्री (फतेहपुर- उ० प्र०), श्री गिरीश चन्द्र बिष्ट 'हंशमुख' (दिल्ली), श्री जगमोहन आजाद (दिल्ली), डा० रमेश चन्द्र मिश्र (अल्मोड़ा- उत्तराखण्ड), सुश्री सुधा शुक्ला (लखनऊ), श्री सतीश जोशी (दिल्ली), सुश्री स्नेह लता (लखनऊ), श्रीमती शैल डंगवाल (देहरादून), सुश्री रेजिना सहर (फ़र्रुखाबाद), श्री देवेन्द्र कुमार मिश्रा (छिन्दवाडा-म० प्र०), श्री मधुकर अष्ठाना (लखनऊ-उ०प्र०), श्री कुमार शर्मा ’अनिल’ (चंडीगढ़) इत्यादि की कवितायें।

दोहे: श्री कृपा शंकर ’अचूक’ के दोहे (जयपुर-राजस्थान)|

कहानियां- श्री गजेन्द्र रावत (दिल्ली), डा० पान सिंह (हिमांचल प्रदेश) व सुश्री काजल पाण्डेय (दिल्ली)।

समाज सरोकार- प्रयावरण विशेषज्ञ डा० वी० के० जोशी (लखनऊ) का हिमालय के प्रवर्तीय बनों पर आधारित आलेख।

इसके साथ ही कई नये व प्रतिष्ठित रचनाकारों की रचनायें/लेख इस अंक मे देखे जा सकते हैं।

सभी साहित्यकारों,रचनाकारों व कलाकारों से निवेदन है कि पत्रिका के अगले अंको के लिये स्तरीय, मौलिक व अप्रकाशित रचनायें/लेख/कहानियां इत्यादि उपलब्ध करायें।

महत्वपूर्ण: पत्रिका के जुड़े सहयोगियों/संरक्षक मंडल/ परामर्श मंडल व संपादक मंडल ने सुनिश्चित किया है कि पत्रिका अपने आगामी अंको में जल्दी ही 'रंगमंच' पर १ महत्वपूर्ण विशेषांक निकालने जा रही है| अतः समस्त लेखकों व पाठकों से निवेदन है कि अपने-अपने प्रदेश से जुडी महत्वपूर्ण रंगमंच सख्सियतों, संस्थाओं और क्रियाकलापों (लोक रंगमंच) पर आधारित आलेख उपलब्ध कराएँ|

पता: एम-3, सी-61, वैष्णव अपार्टमेन्ट,
शालीमार गार्डन-2, साहिबाबाद,
गाज़ियाबाद (उ० प्र०)
पिन कोड -२०१००५

Friday, February 25, 2011

'सृजन से' पत्रिका के अप्रैल-जून २०११ अंक के सन्दर्भ में....

"सृजन से" पत्रिका के सभी सहयोगियों को हर्ष के साथ सुचित किया जाता है कि "सृजन से" पत्रिका के अप्रैल-जून २०११ अंक की गतिविधियां शुरू हो गयी हैं। इस अंक हेतु स्तरीय गज़लों व कविताओं के लिए कुछ पृष्ठ सुनिश्चित किये गये हैं| इसलिये सभी महानुभावों से अनुरोध है कि पत्रिका के अप्रैल-जून २०११ अंक के लिये अपनी मौलिक व अप्रकाशित गज़लें व कविताएँ हमें १५ मार्च २०११ तक भेजने का कष्ट करें।

सभी रचनाकारों से निवेदन है कि पत्रिका के अगले अंक के लिये मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित घोषणा पत्र के साथ कम से कम ३ रचनायें भेजें जिनमें से संपादक मंडल द्वारा चयनित किन्ही १ या २ रचनाओं को प्रकाशित किया जाएगा।


धन्यवाद,
मीना पाण्डे
संपादक- 'सृजन से'
पता: एम-3, सी-61, वैष्णव अपार्टमेन्ट,
शालीमार गार्डन-2, साहिबाबाद
गाज़ियाबाद (उ० प्र०), पिन - २०१००५
ब्लॉग- www.srujunse.blogspot.com

Saturday, February 12, 2011

Feedback from Mahavir Uttaranchali ji....

’सृजन से’ का जुलाई-सितम्बर 2010 अंक देखा। साहित्यिक पत्रिका निकालने के लिए आपको तथा पूरी टीम को बधाई। कहानियाँ, कविताएँ, लेख, साक्षात्कार सभी स्तरीय हैं। कला-संस्कृति के माध्यम से आपने गढ़वाल के बाल लोक साहित्य से अवगत कराया, धन्यवाद।

महावीर उत्तरांचली
वसुन्धरा इनक्लेव (दिल्ली)

Feedback from Sriram Tiwari ji...

पत्रिका में रचनाओं की सचित्र प्रस्तुति उसे आकर्षक और पठनीय बना देती है। सामग्री का चयन सूझ-बूझ के साथ किया गया है। डा0 रमानाथ त्रिपाठी ने रवीन्द्र नाथ ठाकुर की कविता की व्याख्या की है उसमें एक छोटी बच्ची का चित्र उभर कर आता है वह मर्मस्पर्शी है। श्री भरत पटेल का लेख ज्ञानवर्धक और रोचक है।

श्रीराम तिवारी
ग्वालियर (म0प्र0)

Feedback from Bhagwat Prasad ji....

’सृजन से’ का स्मृति अंक मिला। विभिन्न साहित्यकारों के संस्मरण पढ़ने को मिले। यदि मुझे इसकी सूचना मिलती तो मैं भी कुछ भेजता। मेरे संस्मरण अतीत की झलकियां शीर्षक से छपे हैं। द्वितीय संस्करण निकल चुका है। अब में 91 वर्ष का हूँ। इस लम्बी जीवन यात्रा में क्या कुछ नहीं देखा, पढ़ा और सुना। कुछ लिखा बहुत कुछ अनलिखा रह गया है। अब तो इस यात्रा का अंतिम पड़ाव है। स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता अतः लेखन कम हो गया है। पत्रिका के सभी स्तम्भ आकर्षक हैं। नारी-विमर्श पर चर्चा तो बहुत हो रही है पर काम कम। हमें महादेवी वर्मा, गौरा पंत शिवानी की आवश्यकता है, राखी सावंत की नहीं। मैं अहमदाबाद में हूँ, बम्बई की देखा देखी यहाँ भी यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है। आधुनिक होते हुए भी भारतीय संस्कृति की रक्षा यहाँ की नारियाँ ही करेंगी।

भागवत प्रसाद मिश्र ’नियाज’
अहमदाबाद (गुजरात)

Feedback from Brij Kishor Ji...

’सृजन से’ का स्मृति अंक सामने है। मैने इस अंक की तमाम अच्छी पंक्तियों को रेखाँकित किया है और उनमें मेरी प्रति में पहला रेखाँकन सम्पादकीय की - प्राथमिक पंक्तियों पर हुआ। आपको बधाई। पुरा अंक कई दृष्टियांे से उल्लेखनीय है। विशेष रूप से मैं डॉ0 सुवर्ण रावत के संस्मरण, निशा बहुगुणा और मीनू जोशी की कविताओं तथा दुष्यन्त कुमार पर - डा0 शिव ओम अम्बर के लेख से प्रभावित हुआ हूँ। “अभिव्यंजनायें सभी बड़ी अदभुत हैं। द्वितीय पृष्ठ पर स्मृति शेष साहित्यकारों के चित्र देकर आपने अंक की उपयोगिता को और बढ़ा दिया है। अगले अंक का इन्तजार है।

बृजकिशोर सिंह ’किशोर’
फर्रूखाबाद (उ0प्र0)

Feedback from Ghanand Pandey Ji....

जुलाई-सितम्बर 2010 का अंक प्राप्त हुआ। धन्यवाद सहित आभार भी। एक कहावत है ‘‘गौंक लछिन ग्वैठा बटी‘‘ अर्थात किसी गाँव के लक्षण उस गाँव को जाने वाले मार्ग से ही पता लग जाते हैं। कहने का तात्पर्य यही है कि किसी पत्रिका की सफलता प्रथम दृष्ट्या उस की सफल सम्पादकीय है। ‘‘सृजन से‘‘ की सम्पादकीय अपने आप में श्रेष्टता को प्राप्त है। पत्रिका के हृदय में उद्दत समस्त सामग्री यथा-आलेख-कहानी, एकांकी-ग़ज़ल, कविता या फिर कला संस्कृति हो अथवा पत्रिका का कला पक्ष, ये सभी बेजोड़ हैं। डॉ0 शिव ओम ’अम्बर’ का वातायन और श्री धन सिंह मेहता ’अंजान’ की कहानी ‘भरोसे का आदमी‘ आदि सभी कुछ अपने आप में पठनीय हैं। कहीं-कहीं पर प्रूफ में त्रुटियाँ हैं जो आसानी से दूर हो सकती है। मैं पत्रिका की सफलता की कामना करता हूँ और यह भी कामना करता हूँ कि ‘सृजन से‘ समाज का सही मार्गदर्शन करने में सफल एवं सक्षम हो।

घनानन्द पाण्डेय ’मेघ’
लखनऊ (उ0प्र0)

Feedback from Brijendra Agnihotri ji...

’सृजन से’ का अक्टूबर-दिसम्बर 2010 अंक मिला। एक ही बार में पढ़ गया। लाजवाब संपादन, उत्कुष्ट रचना चयन....सच,साहित्य के संगम में डुबकी लगाते हुए कब आलेख, कहानी, ग़ज़ल, कविता, साक्षात्कार व समीक्षा के पड़ाव गुजर गये, पता ही न चला। रचनाकारों को स्मृति में बसाने का नायाब तरीका सीखा मैंने आपसे। दूरभाष पर आपसे वार्ता हुई थी। मधुराक्षर के कुछ पिछले अंक प्रथक डाक से भेज रहा हूँ। मिलने पर प्राप्ति सूचना जरूर दें।

बृजेन्द्र अग्निहोत्री
फतेहपुर(उ0प्र0)

Feedback from Chandra Bhushan Ji...

‘सृजन से‘ पत्रिका का अक्टूबर-दिसम्बर 2010 ’स्मृति अंक’ मिला। धन्यवाद। इस अंक को प्रख्यात कथाकार व पत्रकार मनोहर श्याम जोशी, उत्तराखण्ड के जनकवि गिरीश तिवारी ’गिर्दा’, कवि-पत्रकार कन्हैया लाल नन्दन, छायावादी कवि सुमित्रा नन्दन पंत और हिन्दी ग़ज़ल के आधार स्तम्भ दुष्यन्त कुमार जैसे रचनाकारों की स्मृति पर केन्द्रित करके आपने बहुत अच्छा कार्य किया है। इसके लिए ’सृजन से’ की पूरी टीम बधाई का पात्र है। इस अंक के लेख और कविताएँ भी पठनीय हैं। पत्रिका के नियमित प्रकाशन पर हम सभी की ओर से हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।

चन्द्र भूषण
दरियागंज (दिल्ली)

Feedback from Pradeep Pant Ji....

’सृजन से’ का अक्टूबर-दिसंबर 2010 का अंक मिला, इससे पहले भी अंक मिलते रहे हैं। सीमित पृष्ठों के बावजूद साहित्यिक, सांस्कृतिक और कला सम्बन्धी तथा अन्य मुद्दों की यह गंभीर और गरिमामय पत्रिका है। इस अंक में अब तक मनोहर श्याम जोशी पर पंकज बिष्ट, ’गिर्दा’ पर डॉ0 सुवर्ण रावत, दुष्यंत कुमार पर डॉ0 ’अंबर’ और कुमाऊँ की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा पर ललित मोहन पाण्डेय के लेख पढ़ लिए हैं। कुछ कविताएं और ग़ज़लें भी पढ़ीं। श्री ललित मोहन पाण्डेय ने आजादी के कुछ वर्ष पहले से कुछ वर्ष बाद तक के अल्मोड़ा के अविस्मरणीय संस्मरण लिखे हैं। वे थोड़ा और विस्तार से लिखते तो पाठकों को उस दौर की और भी अधिक जानकारी मिलती। तब के कलाकारों विशेषतः मोहन उप्रेती ने अपने अथक प्रयासों सें कुमाऊं के लोक संगीत और लोक नृत्यों को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित किया। ठीक ही लिखा है पाण्डेय जी ने कि तब मोहन उप्रेती द्वारा गाया गया ’बेडु पाको’ गीत पहाड़ में ही नहीं विदेशों तक में लोकप्रिय हो गया। उप्रेती जी ने इस गीत में समय की आवश्यकता के अनुसार कुछ परिवर्तन भी किये थे। बहरहाल....।

प्रदीप पंत
इस्ट ऑफ कैलाश (नई दिल्ली)

Wednesday, February 2, 2011

जन०-मार्च २०११ अंक की विशेष सामग्री.....

"सृजन से"...
"सृजनात्मक विधाओं की संवाहक" त्रैमासिक पत्रिका

साहित्य आलेख-
१. शराफ़त अली खान जी का आलेख- स्त्री संसार की दुर्लभ चीज है।
२. इरानी महिला कथाकारों पर भीष्म कुकरेती जी का आलेख (विश्व साहित्य)।
३. प्रख्यात लेखिका पुष्पा सक्सेना जी पर डा० इला प्रसाद का संस्मरण।
४. दलित महिला विमर्श पर रामशिव मुर्ति यादव जी का आलेख।

संस्कृति- चिपको वुमेन गौरा देवी पर वरिष्ठ लेखिका बीणापाणी जोशी जी का आलेख।

वातायन स्तम्भ- हिन्दी की प्रख्यात कवियत्री महियसी महादेवी वर्मा जी पर डा० शिव ओम अम्बर जी का आलेख।

कहानियां- अर्चना पैन्यूली जी (डेनमार्क), रचना श्रीवास्तव जी (यू०एस०ए०) व हेमन्त जोशी जी (उत्तराखन्ड)।

साक्षात्कार- अन्तरराष्टीय ख्याति प्राप्त कथक नृत्य गुरू पुर्णिमा पाण्डे जी से उनके नृत्य संगीत पर दीपा जोशी जी की लम्बी बातचीत के अंश।

रंगमंच: राष्ट्रीय नाट्य विधालय की अपनी स्मृतियों में वरिष्ठ रंगकृमी नईमा खान उप्रेती जी का आलेख।

विशेष (वार्तालाप): पुरुष प्रधान समाज में अपनी अस्मिता को बनाये रखने के लिये महिलाओं को विशेष संघर्ष करना पडता है।

विषय पर अपने-अपने क्षेत्र विशेष में उल्लेखनीय योगदान दे रही महिलायें जैसे श्रीमती ईरा पाण्डे जी - लेखिका, श्रीमती अनामिका जी - लेखिका, श्रीमती प्रज्ञा वर्थवाल ध्यानी एड्वर्टाइजिंग, श्रीमती बेला नेगी जी - फ़िल्म मेकर व राइटर, श्रीमती नईमा खान उप्रेती जी - वरिष्ठ रंगकृमी, श्रीमती पुर्णिमा पाण्डे जी - कथक नृत्य गुरू व श्रीमती शबनम मेहरा- चित्रकार इत्यादि के विचार।

गज़ल विथि- वर्षा सिंह जी व मधुरिमा जी की गज़लें।

समाज सरोकार- आजादी के आन्दोलन में महिलाओं की भुमिका पर अकांक्षा यादव जी का आलेख।

कवितायें- श्रीमती सरोजनी नौटियाल (रूडकी), डा० प्रभा मुजुमदार (अहमदाबाद) इत्यादि की कवितायें।

इसके साथ ही कई नये व प्रतिष्ठित रचनाकारों जैसे श्री दिनेश पाठक -रामनगर (संगीत), श्री दीपक मशाल - आयरलेंड (लघुकथा), श्री सुनील गज्जाणी-बिकानेर-राज०(लघुकथा), श्री विनोद सिंह बिष्ट-उत्तराखंड (लोक सहित्य) आदि की रचनायें/लेख इस अंक मे देखे जा सकते हैं।

सभी साहित्यकारों,रचनाकारों व कलाकारों से निवेदन है कि पत्रिका के अगले अंको के लिये स्तरीय, मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित रचनायें/लेख/कहानियां इत्यादि उपलब्ध करायें।


पता: एम-3, सी-61, वैष्णव अपार्टमेन्ट,
शालीमार गार्डन-2, साहिबाबाद,
गाज़ियाबाद (उ० प्र०)
पिन कोड -२०१००५

Friday, January 14, 2011

सृजन से पत्रिका का महिला केन्द्रित अंक.....

आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि "सृजन से" का जन०-मार्च २०११ अंक महिलाओं पर केन्द्रित किया गया है।

इस अंक में....
पुरुष प्रधान समाज में अपनी अस्मिता को बनाये रखने के लिये महिलाओं को विशेष संघर्ष करना पडता है।

विषय पर अपने-अपने क्षेत्र विशेष में उल्लेखनीय योगदान दे रही महिलायें जैसे श्रीमती ईरा पाण्डे - साहित्यकार (पुत्री स्व० श्रीमती शिवानी पंत), श्रीमती नईमा खान उप्रेती जी - वरिष्ठ रंगकृमी, श्रीमती पुर्णिमा पाण्डे जी - सुप्रसिद्व कथक नृत्यागणा, श्रीमती अनामिका जी - लेखिका व कवियत्री, श्रीमती बेला नेगी जी - फ़िल्म मेकर व लेखिका इत्यादि के विचार उपलब्ध हैं।

इसके साथ ही पत्रिका में महिलाओं की उपलब्धियों और स्थिती पर बहुत कुछ और भी इस अंक में पढा जा सकता है.......