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Saturday, February 12, 2011

Feedback from Pradeep Pant Ji....

’सृजन से’ का अक्टूबर-दिसंबर 2010 का अंक मिला, इससे पहले भी अंक मिलते रहे हैं। सीमित पृष्ठों के बावजूद साहित्यिक, सांस्कृतिक और कला सम्बन्धी तथा अन्य मुद्दों की यह गंभीर और गरिमामय पत्रिका है। इस अंक में अब तक मनोहर श्याम जोशी पर पंकज बिष्ट, ’गिर्दा’ पर डॉ0 सुवर्ण रावत, दुष्यंत कुमार पर डॉ0 ’अंबर’ और कुमाऊँ की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा पर ललित मोहन पाण्डेय के लेख पढ़ लिए हैं। कुछ कविताएं और ग़ज़लें भी पढ़ीं। श्री ललित मोहन पाण्डेय ने आजादी के कुछ वर्ष पहले से कुछ वर्ष बाद तक के अल्मोड़ा के अविस्मरणीय संस्मरण लिखे हैं। वे थोड़ा और विस्तार से लिखते तो पाठकों को उस दौर की और भी अधिक जानकारी मिलती। तब के कलाकारों विशेषतः मोहन उप्रेती ने अपने अथक प्रयासों सें कुमाऊं के लोक संगीत और लोक नृत्यों को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित किया। ठीक ही लिखा है पाण्डेय जी ने कि तब मोहन उप्रेती द्वारा गाया गया ’बेडु पाको’ गीत पहाड़ में ही नहीं विदेशों तक में लोकप्रिय हो गया। उप्रेती जी ने इस गीत में समय की आवश्यकता के अनुसार कुछ परिवर्तन भी किये थे। बहरहाल....।

प्रदीप पंत
इस्ट ऑफ कैलाश (नई दिल्ली)

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