’सृजन से’ का स्मृति अंक मिला। विभिन्न साहित्यकारों के संस्मरण पढ़ने को मिले। यदि मुझे इसकी सूचना मिलती तो मैं भी कुछ भेजता। मेरे संस्मरण अतीत की झलकियां शीर्षक से छपे हैं। द्वितीय संस्करण निकल चुका है। अब में 91 वर्ष का हूँ। इस लम्बी जीवन यात्रा में क्या कुछ नहीं देखा, पढ़ा और सुना। कुछ लिखा बहुत कुछ अनलिखा रह गया है। अब तो इस यात्रा का अंतिम पड़ाव है। स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता अतः लेखन कम हो गया है। पत्रिका के सभी स्तम्भ आकर्षक हैं। नारी-विमर्श पर चर्चा तो बहुत हो रही है पर काम कम। हमें महादेवी वर्मा, गौरा पंत शिवानी की आवश्यकता है, राखी सावंत की नहीं। मैं अहमदाबाद में हूँ, बम्बई की देखा देखी यहाँ भी यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है। आधुनिक होते हुए भी भारतीय संस्कृति की रक्षा यहाँ की नारियाँ ही करेंगी।
भागवत प्रसाद मिश्र ’नियाज’
अहमदाबाद (गुजरात)
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