सृजन से... का सृजन सुसज्जित ५२ पृष्ठीय अप्रैल -जून २०११ अंक पंद्रह काव्य सृजनों एवं छै ग़ज़लों तथा अन्य नियमित पठनीय साहित्य लेकर आया. सम्पादक की 'मित्रवत दो बातें' सृजन से...के पाठकों के समक्ष आते ही बहुत कुछ कह देती हैं. एक नई सोच के साथ कुछ कर गुजरने का जज्बा लेकर संपादक सभी रचनाकारों को सृजन से जोड़ते हुए शिष्ट संपादन धर्म का परिचय दे रही हैं. सूक्ष्म में एक बात कहूं तो चलूँ-
दरिया की तरह तू बहता चल
बीहड़ में राह बनता चल ,
भटका राही जो देखे तुझे
कर उसका पथ प्रदर्शन तू.
कर खुद अपना सञ्चालन तू.
पूरन चन्द्र कांडपाल
दरिया की तरह तू बहता चल
ReplyDeleteबीहड़ में राह बनता चल ,
सुन्दर रचना .
Tahedil se Shukriya pandey ji.
ReplyDeleteदरिया की तरह तू बहता चल
ReplyDeleteबीहड़ में राह बनता चल .
very good.
धन्यवाद निशा जी
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