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प्रिय संपादकजी
सृजन से का जुलाय अंक मिला। इस अंक में सभी लेख बहुत अच्छे लगे।
इसके लिए आपको बधाई। मेरा सु़झाव है कि यहां के पुरातत्व एवं विकास के ऊपर भी कुछ लेख होने चाहिये।
आज ही गिरदा का देहान्त हो गया है। अब अगला अंक आप शायद उनको समर्पित करना चाहें।
मुझे विश्वास है कि आपके नेतृत्व में सृजन से का उत्तरोत्तर विकास होता जाएगा।
शुभकामनाओं सहित
डा. धर्मपाल अग्रवाल
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'Srujanse' ka tisra ank mila. Sampadak, Pramarshdata, Sanrakshakmandal ke sath 'Srujan se' ki puri team ko mubarakbad ! Kala,Sahitya,Sanskriti ke anek vidhaon ke rango se saji-sanwari sabhi krtiyan achhi lagi. Visheshkar- Sharafat Ali Khan, Manmohan Saral, Kewal Tiwari, Dhan Singh Mehata'Anjan' ke kramashah: Shor, Dadur Pul Ka Bachha- B. Vitthaall, Gauraiya Ka Pankh, Bharose Ka Aadami. Kiran Pande, Dr. Saumitra Sharma aur Dinesh Diwedi ne Bhishm Sahini, Dr. Ramnath Tripathi, evam Mridula Garg ke aanek pahuluon ko chhuwa. Kavitayen, Gzalein, Abhivanjanayein ruchikar lagein. 'Srujan Nibandh' ke sath 'Srujan Parikrama' ke tahat bahut kuchh pata chala.' Nanha Srujan' nam se chhote bachhon ko bhi jagah mii, bahut aachha laga. Ismein Aania aur Aania Kaushik ki Kakshaon ka pata nahein chal paya- ye dono ek hi hain ya alag-alag? Aakhir mein yah bhi achha laga ki 'Srujan se' anavashyak vigyapano se pati..bhari nahi thi.- Shubhkamanein!
--Dr. Suwarn Rawat,
NSD Alumnus,One of the founders of NSD TIE Co., New Delhi
( Has been awarded PhD degree entitled "Theatre : Its significance in Education" )
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सृजन से का तीसरा अंक प्राप्त हुआ । मार्मिक विषयों, रोचक जानकारियों, मनोरंजन एवं ज्ञान से भरपूर पत्रिका का यह अंक हृदय स्पर्शी है । कवि कुलवंत सिंह जी का ‘लक्ष्य से जीत तक‘ लेख नित तौर पर सभी को विशेष रूप से युवा वर्ग को प्रोत्साहित एवं लाभान्वित करने वाला लेख है। हरीश बडोला जी की कविता ‘मां! मुझे बताओ‘ हृदय को छू जाती है ।
आचार्य दार्षनेय लोकेश जी द्वारा ज्योतिष की दिशा में एक जो सार्थक प्रयास किया गया है, उसे जारी रखने हेतु अनुरोध है । अम्बर जी का ‘मां है तो सारा घर ठाकुरद्वारा है‘ लेख में उल्लिखित दो पंक्तियां ‘किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई, मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में मां आई‘ तो दिल में ही उतर आती हैं। पत्रिका को अत्यधिक रोचक एवं स्तरीय बनाने हेतु हास्य व्यंग एवं भारतीय लोक संस्कृतियों की झलक भी प्रस्तुत किये जाने की आवश्यकता महसूश ही जा रही है । विषय वस्तु को देखते हुए पत्रिका के सफल भविश्य की आशा है ।
शुभ कामनाओं के सांथ
कैलाश चन्द्र भट्ट
एम-351, सरोजिनी नगर
नई दिल्ली - 11023
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