'सृजन से ' का अंक ३
सृजन
से का अंक -३ मेरे सामने है. पिछले दोनों अंक भी पास हीहैं
. पत्रिका में बहुकोणीय निखार आ रहा है. इस अंक में किरनपाण्डेय
का भीष्म साहनी पर आलेख एक संघर्षशील रचनाकार कास्मरण
करता है. 'लक्ष्य से जीत तक' कुलवंत सिंह का लेख उर्जावानहै
. वातायन में 'अम्बर' का सन्देश बस यही कहता है '.माँ से बढ़करकौन
'.?मृदुला
गर्ग का दिनेश द्विवेदी द्वारा साक्षात्कार हिंदी लेखकों औरआलोचकों
, को बहुत कुछ संदेश देता है. मेरे विचार से लेखन एकसाधना
है. निःसंदेह बेहतर लेखन अपने माहौल में रहकर ही सृजितहोता
है. दिनेश द्विवेदी के प्रश्न और मृदुला जी के उत्तर कई प्रकार सेएक
आम पाठक की जिज्ञासा को शांत करते हैं. हमने गाँधी की 'शांति'और
भगत सिंह की 'क्रांति' दोनों से ही किनारा कर लिया है. भ्रष्टाचारको
उखाड़ने की क्रांति के बारे में अब कोई नहीं सोचता. अब तोभ्रष्टाचार
सहने और उसकी अनदेखी करने की एक आदत बन गयी है.हेमंत
जोशी ने ब्रिजेन्द्र लाल शाह रचित साहित्य की जानकारीउपलब्ध
करा के शाह जी की स्मृति जगायी है. कविता 'कब आओगे'में
'गुम सुम' की जगह 'नैन बिछाए बैठी ' मीना', कब आओगे गीतबुलाते
' के लिए कवियत्री से शब्द बदलाव का अनुरोध करूँगा.सृजन
से की सभी सामग्री पठनीय एवं सराहनीय है. नन्हा सृजन पृष्ठमें
बच्चों के लिए सामान्य ज्ञान के दस-बारह प्रश्न पूछे जा सकते हैं औरउसी
के अंत में उनके उत्तर दिए जा सकते हैं. उदाहरणअर्थ -फूलों की घाटीकहाँ
है ? सभी विषयों पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं. इससे पत्रिका बच्चोंको
भी पाठकों के समूह में शामिल करेगी.पूरन
चन्द्र कांडपाल
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