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Monday, September 27, 2010

feedback from puran kandpal ji.

'सृजन से ' का अंक

सृजन

से का अंक - मेरे सामने है. पिछले दोनों अंक भी पास ही

हैं

. पत्रिका में बहुकोणीय निखार रहा है. इस अंक में किरन

पाण्डेय

का भीष्म साहनी पर आलेख एक संघर्षशील रचनाकार का

स्मरण

करता है. 'लक्ष्य से जीत तक' कुलवंत सिंह का लेख उर्जावान

है

. वातायन में 'अम्बर' का सन्देश बस यही कहता है '.माँ से बढ़कर

कौन

'.?

मृदुला

गर्ग का दिनेश द्विवेदी द्वारा साक्षात्कार हिंदी लेखकों और

आलोचकों

, को बहुत कुछ संदेश देता है. मेरे विचार से लेखन एक

साधना

है. निःसंदेह बेहतर लेखन अपने माहौल में रहकर ही सृजित

होता

है. दिनेश द्विवेदी के प्रश्न और मृदुला जी के उत्तर कई प्रकार से

एक

आम पाठक की जिज्ञासा को शांत करते हैं. हमने गाँधी की 'शांति'

और

भगत सिंह की 'क्रांति' दोनों से ही किनारा कर लिया है. भ्रष्टाचार

को

उखाड़ने की क्रांति के बारे में अब कोई नहीं सोचता. अब तो

भ्रष्टाचार

सहने और उसकी अनदेखी करने की एक आदत बन गयी है.

हेमंत

जोशी ने ब्रिजेन्द्र लाल शाह रचित साहित्य की जानकारी

उपलब्ध

करा के शाह जी की स्मृति जगायी है. कविता 'कब आओगे'

में

'गुम सुम' की जगह 'नैन बिछाए बैठी ' मीना', कब आओगे गीत

बुलाते

' के लिए कवियत्री से शब्द बदलाव का अनुरोध करूँगा.

सृजन

से की सभी सामग्री पठनीय एवं सराहनीय है. नन्हा सृजन पृष्ठ

में

बच्चों के लिए सामान्य ज्ञान के दस-बारह प्रश्न पूछे जा सकते हैं और

उसी

के अंत में उनके उत्तर दिए जा सकते हैं. उदाहरणअर्थ -फूलों की घाटी

कहाँ

है ? सभी विषयों पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं. इससे पत्रिका बच्चों

को

भी पाठकों के समूह में शामिल करेगी.

पूरन

चन्द्र कांडपाल

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